मानवाधिकार न्यूज़ की टीम पहुंची प्रयाग इंटरनेशनल स्कूल और बच्चो के भविष्य को देखते हुए की गई कुछ चर्चाएं

प्रयाग इंटरनेशनल स्कूल
बच्चो के भविष्य को देखते हुए कुछ चर्चाएं
1) बच्चे मोबाइल घर पर ना देखें इसके लिए एक ड्रामा एक्ट स्कूल में किया जाए।
2) बच्चो को मां और पिताजी के पैर छुने चाहिए और एक संस्कार के हित में माहोल बनाना चाहिए स्कूल में ।
3) Good Touch / Bad Touch की जानकारी लडको और लड़कियों दोनो को दे जानी चाहिए।
4) हर कक्षा में सीसीटीवी लगा है तो क्या हर अभिभावक घर पर बैठे बैठे अपने बच्चो को देख सकते है ?
5) पेड़ लगाने का एक कार्यक्रम आपके साथ आपके स्कूल में किया जाएगा जिसमें कुछ बच्चे भी शामिल रहेंगे ताकि उनको पेड़ की अहमियत समझ में आए ।
6) बच्चो का बकाया शुल्क मांगने के लिए ग्रुप में सबको मैसेज नही किया जाना चाहिए, जो दे चुका है वह भी उस ग्रुप में है।
7) बच्चो को गाल पर ना मारा जाए – धीरे से भी नहीं।
8) पढ़ाई का ज्यादा दबाव ना दिया जाए, जो बच्चा कमजोर है उसको भी प्ररित किया जाए।
9) बस के ड्राइवर – कंडक्टर को बात करने का तरीका बताया जाए।
10) बस की जर – जर इसितीथी सुधारने का प्रयास किया जाए।
11) बच्चो का पानी पीने की व्यस्था को ध्यान दिया जाए।
12) बाथरूम में जो भी बच्चे जाए उन्हें बाहर से निगरानी करनी चाहिए ताकि एक बच्चा एक बार में एक बच्चा ही अंदर जाए।
13) जो बच्चे  पढ़ाई में कमजोर लगे उनका एक्स्ट्रा क्लास चलना चाहिए
14) बाहरी कोई इंसान कुछ दे खाने के लिए तो नहीं खाना है ।
15) छोटे बच्चो से भी mic में कुछ कुछ बोलते रहे ताकि उनका मनोबल भी बढ़ता रहे।

नेशनल पब्लिक स्कूल बबुरी चंदौली में विगत चार दिनों से वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा था जिसमें विद्यालय में अध्ययनरत सभी कक्षाओं के बच्चों ने प्रतिभाग किया था आज विद्यालय के प्रबंधक अरुण कुमार पाठक और विद्यालय के अध्यक्ष अखिलेश कुमार पाठक जी के द्वारा समस्त विजेता बच्चों को पुरस्कृत किया गया इस अवसर पर विद्यालय के समस्त बच्चें ,विद्यालय के प्रधानाचार्य अनंत प्रकाश, अशोक श्रीवास्तव व सभी अध्यापक और अध्यापिकाएं उपस्थित थी।

मानवाधिकार न्यूज़ की ओर से मज़दूरों को समर्पित एक अपील
“फिर से चाहिए 8 घंटे का अधिकार –
मज़दूर न किसी का ग़ुलाम है, न कोई व्यापार!”

आज 1 मई – अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस है। यह वह दिन है जब पूरी दुनिया उन मेहनतकश हाथों को सलाम करती है, जिन्होंने अपने खून-पसीने से दुनिया का निर्माण किया है।
लेकिन आज एक बार फिर वही सवाल खड़ा है –
क्या हमारे मज़दूरों को वह सम्मान, वह अधिकार मिल पा रहे हैं जिसके लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी थी?

1886 में अमेरिका के शिकागो में जब मज़दूरों ने 8 घंटे की शिफ्ट के लिए अपनी जानें दीं, तब जाकर यह अधिकार मिला।
मगर आज फिर वही मज़दूर 12 से 18 घंटे काम करने को विवश है –
कम मज़दूरी, ज़्यादा काम, और सम्मान शून्य।

मानवाधिकार न्यूज़ की ओर से हम यह स्पष्ट संदेश देना चाहते हैं:

8 घंटे का काम मज़दूर का हक़ है, एहसान नहीं।

हर श्रमिक को सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, और काम का सुरक्षित वातावरण मिलना चाहिए।

मज़दूर को कोई ठेके का सामान न समझें – वह भी एक इंसान है, जिसके सपने हैं, परिवार है, और जीने का हक़ है।


आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है –
मज़दूरों की आवाज़ को फिर से बुलंद करना।
उनके हक़ के लिए एकजुट होना।

हमारा संकल्प:
“रोटी भी चाहिए, इज़्ज़त भी चाहिए,
इंसान हैं हम – गुलाम नहीं!”

आपका
संजय रस्तोगी
राष्ट्रीय अध्यक्ष – मानवाधिकार न्यूज़

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