कमीशन का अड्डा बन चुका है गोपाल बुक डिपो – अभिभावक परेशान

पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर में स्थित गोपाल बुक डिपो की दर्दनाक कहानी

10 स्कूल का ठेका लेकर नहीं दे पा रहे हैं किताबें –
घंटों लाइन में मुस्क्कत के बाद कैसे-कैसे करके किताबें दे रहे हैं वह भी आधी अधूरी इनके पास पूरी किताब है ही नहीं।
दुकान पर अत्यंत भीड़ और दूर-दूर से अभिभावक आए हुए परेशान।
इतनी भीड़ यह संभाल नहीं पा रहे हैं और बिना गिने किताबें भी दे रहे हैं, दुकान पर दोबारा जाने पर और पूछने पर पता लगता है की चार किताबें हैं ही नहीं जो की एक हफ्ते बाद मिलेगी जबकि स्कूल में पढ़ाई निरंतर चालू है, आधी किताबें ई रिक्शा पर लोड हो कर आ रही हैं और आधी दुकान के बाहर जमीनों पर पड़ी है जिन किताबों को दुकानों द्वारा नहीं संभाला जा रहा है। तीसरी बार जाने पर किताबें मिली वह भी आधी अधूरी।
दुकानों पर ज्यादा भीड़ होने के कारण महिलाएं दुकान के काउंटर तक पहुंची नहीं पा रही हैं पता नहीं इसमें किसकी कमी है शिक्षा विभाग की या स्कूल की व्यवस्था की या दुकानों की कमीशन की –
शर्मनाक
सो रही व्यवस्था – सो रहा शिक्षा विभाग

मानवाधिकार न्यूज़ की ओर से मज़दूरों को समर्पित एक अपील
“फिर से चाहिए 8 घंटे का अधिकार –
मज़दूर न किसी का ग़ुलाम है, न कोई व्यापार!”

आज 1 मई – अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस है। यह वह दिन है जब पूरी दुनिया उन मेहनतकश हाथों को सलाम करती है, जिन्होंने अपने खून-पसीने से दुनिया का निर्माण किया है।
लेकिन आज एक बार फिर वही सवाल खड़ा है –
क्या हमारे मज़दूरों को वह सम्मान, वह अधिकार मिल पा रहे हैं जिसके लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी थी?

1886 में अमेरिका के शिकागो में जब मज़दूरों ने 8 घंटे की शिफ्ट के लिए अपनी जानें दीं, तब जाकर यह अधिकार मिला।
मगर आज फिर वही मज़दूर 12 से 18 घंटे काम करने को विवश है –
कम मज़दूरी, ज़्यादा काम, और सम्मान शून्य।

मानवाधिकार न्यूज़ की ओर से हम यह स्पष्ट संदेश देना चाहते हैं:

8 घंटे का काम मज़दूर का हक़ है, एहसान नहीं।

हर श्रमिक को सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, और काम का सुरक्षित वातावरण मिलना चाहिए।

मज़दूर को कोई ठेके का सामान न समझें – वह भी एक इंसान है, जिसके सपने हैं, परिवार है, और जीने का हक़ है।


आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है –
मज़दूरों की आवाज़ को फिर से बुलंद करना।
उनके हक़ के लिए एकजुट होना।

हमारा संकल्प:
“रोटी भी चाहिए, इज़्ज़त भी चाहिए,
इंसान हैं हम – गुलाम नहीं!”

आपका
संजय रस्तोगी
राष्ट्रीय अध्यक्ष – मानवाधिकार न्यूज़

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